Sunday, September 9, 2012

मेरी ज़िंदगी को मुझसे बहुत उमीदें है.!!


एक नया सवेरा था, दिन एक नया, एक नई आशा, एक  नई उम्मीद
एक  नई चाह , एक  नई  प्रतीक्षा,
कुछ पाने  की, कुछ कर गुजरने  की,
दुनिया को दिखाने  की के हम भी कुछ है!


मुझे मेरी ज़िंदगी से बहुत उमीदें थी.

जो सपने मैने संजोये,
सपनों को जीने की तमन्ना संजोये,
पूरा करने की चाह में उत्साह में,
सुबह की रोशनी में पहला कदम बढाया,

क्योंकि, मुझे मेरी ज़िंदगी से बहुत  उमीदें थी,

सब कुछ खूबसूरत सा लगा,
चमकता सा हुआ जहाँ नज़र आया,
लोगो में इंसानियत और प्यार नज़र आया,
मुझे चिम्चिमाती हुई दुनिया में खो जाने का  जी किया,

लगा, में बस अब दुनिया को जीत लू ..
कोई ना रूक पायेंगे मुझे,
क्योंकि, मुझे मेरी ज़िंदगी से बहुत  उमीदें  थी,

जब दूसरा कदम बढाया अपनी आशाओं की और,
कुछ धुन्दला नज़र आया ये जहाँ ,
रौशनी  मद्धम  हुईथोड़ा अंधेरा सा छाया,
हाथ थरथराये ,
पैर डगमगाए 

फिर भी चलता गया,
क्यों  की मुझे मेरी ज़िंदगी से बहुत उम्मीदें  थी,

अगले  कदम में लोगो से धोका खाया ,
विश्वास  टुटा ,
बेवफ़ाई मिली,
दिल  टूटा ,
दर्द हुआ, मगर दर्द का एहसास  रह गया अपनी छाप बना कर  दिल अंदर,
मां पिताजी के प्यार में दुनिया का पवित्र रिश्ता नज़र आया,

सुबह का लौटा  घर को लौट आया,
श्याम हुईअंधेरा छाया ,
एक अनहोनी सी आँखों में छI गई,
एक सूनापन  सा मेरे दिल में घर का गया.

Papa ने कहा था,
बीटा .. दुनिया बहुत खूबसूरत है ..

इसे  जियो, हसो  और लोगो को हँसाओ,
ना करो  धोखा  किसी के साथ, ना करो बैमानी ,

फिर क्यों मेरे सपने टूटे, मेरा  विश्वास  टुटा, क्यों? 
क्यों  जिंदगी को जीने की चाह  अब ना राही ..

रात को तारों को निहातरे  रंग, आँखों से आसू टपका ,

मेरी जिंदगी को मुझसे बहुत उमीदें  है  ..

कुछ पाने  की, कुछ कर गुजरने  की,
दुनिया को दिखाने  की के हम भी कुछ है!

जो सपने मैने संजाये हैं,
सपनों को जीने  की तमन्ना संजोये ,
पूरा करने की चाह में उत्साह  में,
सुबह की रोशनी में फिर एक कदम बढाया ,

नया दिन, नया सवेरा, वाही उत्साह  से में फिर चल पाडा ...

सपनों को जीने , जिन्हें  मैने संजोये  है

क्योंकि  मेरी ज़िंदगी को मुझसे बहुत उमीदें  है.!!






If you are an indiblogger, do promote the post, if you liked it. Else, leave a comment, or a like, if the post related to you in some way. Thanks!

5 comments:

  1. बहुत खूब, जिस तरह कहानी " हमे ज़िन्दगी से क्या उम्मीद है" से लेकर "ज़िन्दगी को हमसे क्या उम्मीद है " पर जाती है, बहुत अच्छा लिखा गया है, कुछ अलग सोच पेश की गयी है

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thank you girish. The thing that you observed about how the poem moves from Meri Zindagi to Zindagi ko mujhse was the main crux of it. Thanks..

      Delete
  2. इस कविता का मेरी जिंदगी से जुडा होंना और साथ साथ इसको पड़ना और भी खुबसूरत बना देता है !
    :)

    ReplyDelete
  3. इस कविता का मेरी जिंदगी से जुडा होंना और साथ साथ इसको पड़ना और भी खुबसूरत बना देता है !:)

    ReplyDelete

Fell free to comment, just like Facebook likes ;)

Like us on Facebook!

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...